• Sonu Nigam

    खुदा की मुहब्बत से मामूर होकर

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खु़दा की मुहब्बत से मामूर होकर
मसीहा उतर आया है नूर होकर
 
वह आया है अपने ही वादे की खातिर
लिया जन्म उसने कुंवारी से आखिर!
मुशीर और मालिक-ए-आब्दिअत वही है
सलामती का भी शाहज़ादा वही है
जहान की खुशी का ठिकाना नहीं है
किसी दिल में ग़म का तराना नहीं है
 
दोबारा वह आएगा, कादिर बनेगा।
वह ग़मग़ीन दिल को मुनावर करेगा
हुज़ूर उसकी तब श़ादमानी रहगी
खुशी वह बड़ी आसमानी रहगी
नई सलतनत का वह राजा बनेगा
सदाक़त से तख्त समभाले रहेगा
 

 

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