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मेरे दिल से सितमगर तूने अच्छी दिल्लगी की है
के बनके दोस्त अपने दोस्तों से दुश्मनी की है
मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे
मुझे ग़म देने वाले तू खु़शी को तरसे
मेरे दुशमन...
तू फूल बने पतझड़ का, तुझपे बहार ना आए कभी
मेरी ही तरह तू तड़पे, तुझको क़रार ना आए कभी
जिए तू इस तरह के ज़िंदगी को तरसे
मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे
मेरे दुशमन...
इतना तो असर कर जाएँ मेरी वफ़ाएँ ओ बेवफा
इक रोज़ तुझे याद आएँ अपनी जफ़ाएँ ओ बेवफा
पशेमाँ होके रोए तू हँसी को तरसे
मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे
मेरे दुशमन...
तेरे गुलशन से ज़्यादा वीरान कोई वीराना ना हो
इस दुनिया में कोई तेरा अपना तो क्या बेगाना ना हो
किसी का प्यार क्या तू बेरूख़ी को तरसे
मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे
मुझे ग़म देने वाले तू खुशी को तरसे
मेरे दुश्मन...
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